सरस काव्य गोष्ठी का आयोजन 

Jan 6, 2024 - 18:28
Jan 6, 2024 - 18:28
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सरस काव्य गोष्ठी का आयोजन 

गुना (आरएनआई) अखिल भारतीय साहित्य परिषद व चेतना साहित्य एवं कला परिषद के संयुक्त तत्वाधान में मंगलमय नव वर्ष व अयोध्या में प्रभु श्री राम के नव्य, भव्य और दिव्य मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के पुनीत दिन को दीपावली सम रूप देने राधा कॉलोनी में सरस काव्यगोष्ठी का आयोजन किया गया। 


गोष्ठी के आरंभ में हरीश सोनी ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। 
गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ साहित्यकार विष्णु साथी ने कहा कि वर्तमान में गुना में साहित्य का नई पीढ़ी द्वारा प्रशसनीय सृजन  किया जा रहा है, यह बड़े गौरव की बात है। अपनी रचना को प्रस्तुत करते हुए कहा कि रंग खुशबू रूप यौवन का मिलन अच्छा लगा। आपके स्नेह का मानस भवन अच्छा लगा।।


शायर प्रेम सिंह प्रेम ने कहा कि 
बढ़ती उम्र बेटी की चैन से सोने नहीं देती।
ज़रूरतें गृहस्थी की हंसने-रोने नहीं देती।
कुछ इस तरह से घिरा हूं घर के जंजाल में,
की जवाबदारियां मुझे बूढ़ा होने नहीं देती।
गीतकार हरीश सोनी ने कहा कि
तुम्हारी उम्र कटी बिजलियाँ गिराने में,
गरीब दिल मेरा आता रहा निशाने में।
हमारे दोष तो मालूम हैं जमाने को,
तुम्हारा राज छिपा‌ जाने किस खजाने में।।,
ओज के कवि दिनेश बिरथरे ने सागर मंथन की कहानी को कुछ इस तरह से व्यक्त किया कि  मदिरा दी तो अमृत देकर,मैंने जग को अमृत्व दिया,
वह कामधेनु और कल्पवृक्ष,देकर के दुर्लभ तत्व दिया।हय उच्चश्रवा,गज ऐरावत,पा सुर-असुरों ने मान किया,
गरल हलाहल निकला जब,केवल शिव ने विष पान किया।।,
कवि शंकरराव मोरे ने कहा कि महकती है गजलें खिले मोगरे सी,हंसें यह तो गजलों की बगिया महकती।,
गीतकार रवि शर्मा बंजरा ने जिंदगी जीने की बात कुछ अलग अंदाज में बयां करते हुए कहा कि जीना है तो जीने की एक ऐसी अदा बन जा,,,
देखे जो खुदा तो कहे आ मेरा खुदा बन जा ।।
सुनील शर्मा चीनी ने प्रेम की परिभाषा अपने मधुर कंठ से गीत गाकर दी कहा कि ढाई आखर प्रेम का किस्सा यह पुराना है.. 
 थोड़ी सी हक़ीक़त है थोड़ा सा फ़साना है..।,
गोष्ठी के मुख्य अतिथि उर्दू जुबान के जाने माने शायर डॉ अशोक गोयल ने कहा कि आज कल गुना में तथाकथित शायर नामचीन शायरों की गज़लें शेर अपने नाम से पढ़ रहे हैं, यह निश्चित ही एक निंदनीय और शर्मसार करने वाला कृत्य है बल्कि यह अपराध है। 
आज का युग सूचना क्रांति का युग है, आज दूसरों के कलाम पढ़कर अपना कहकर लोगो को भरमाया नहीं जा सकता। आज एक क्लिक पर रचनाएं नेट पर उनके असली रचनाकार तक ले जाते हैं। 
इसलिए आज ऐसे लोग के चेहरे से नकाब उतरते जा रहे हैं। समाज को ऐसे लोगो का बहिष्कार करना चाहिए।
गोष्ठी का सफल संचालन करते हुए ऋषिकेश भार्गव ने अपनी कविता के माध्यम से प्रभु श्रीराम के स्वरूप को इस धरा की संस्कृति कहा जो कण-कण में व्याप्त है।
स्वयं राम का नाम प्रबल है,
मां सीता का त्याग प्रखर है,
कण-कण में व्यापित सृष्टि के,
हैं राम प्राण विश्वास अटल है।
नव पीढ़ी को इस गाथा का यशगान कराने आया।
है भारत के भरत पुत्र मैं तुम्हे जगाने आया।।
गोष्ठी में वरिष्ठ साहित्यकार लक्ष्मी नारायण बुनकर, श्रीमती संतोष ब्रह्मभट्ट, उमाशंकर भार्गव, धर्मवीर सिंह सूबेदार भारतीय ने कविता पाठ किया। इस अवसर पर श्रीमती पुष्पा सिंह, कुमारी तानिया सिंह, रेखा क्षत्रिय, इंद्र सिंह, हेमा क्षत्रिय, घनश्याम भारद्वाज और अन्य श्रोतागण उपस्थित रहे।

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