सिस्टम के चलते लक्ष्मीगंज में नगरपालिका के 50 साल पुराने कॉम्प्लेक्स के एक हिस्से की छत गिर गई

गुना (आरएनआई) हुए हादसे में ईश्वर की कृपा से चलते मार्केट में खुली चर्चित इस दुकान में कोई जनहानि नहीं हुई। दुकान मालिक विक्की जैन को जरूर चोटें आई हैं। तकनीकी रूप से इस भवन की मजबूती की रिपोर्ट क्या है पता नहीं, लेकिन आम आदमी हालत देखकर कहता था कि कहीं ये गिर न जाए।आम आदमी का आकलन सही निकला।
लक्ष्मीगंज में पीपल तिराहे (जो अब कट चुका) पर ही पुरानी निजी इमारतें जो आपसी संपत्ति विवाद में उलझी हुई हैं उनमें से एक, दो मंजिला इमारत की हालत भी जानलेवा है। इसकी छत पर घास उगी हुई है, कब गिर जाए पता नहीं, ये सबसे भीड़भाड़ वाला इलाका है।
यही हाल सुगन चौराहे पर स्थित विजयवर्गीय कॉम्पलेक्स का भी है, इसमें भी किसी भी वक्त हादसा होगा। इस सरकारी इमारत की छत पर भी जगह जगह घास उग रही है। छत की स्लैब झड़ चुकी है उसमें से निकलती लोहे की छड़ें भी खुद को छुपाने के लिए शर्मा रही हैं, लेकिन सिस्टम नहीं शर्मा रहा। सिस्टम अपनी कोई जिम्मेदारी मानता भी नहीं है। कोई मर भी जाए तो भी सिस्टम को क्या फर्क पड़ना है!
सिस्टम ने अपने हाथ बचाने का सबसे आसान रास्ता निकाल रखा है। रास्ता यह कि हर साल बारिश के पहले सिस्टम अपनी जर्जर व्यावसायिक इमारतों के किराएदारों को सूचना जारी कर बता देता है कि इमारत जर्जर है कुछ हो जाए तो तुम जानना हमारी कोई जिम्मेदारी नहीं है।
तो क्या सिस्टम की जिम्मेदारी किराया वसूलने की है। या फिर दुकानों के नामांतरण के प्रकरण में विशेष रुचि लेने की है? क्या जान माल के नुकसान की कोई जिम्मेदारी नहीं है? क्या नोटिस देने से जिम्मेदारी से बचा जा सकता है?
दरअसल, ये हादसे नहीं हैं। बल्कि ये जानबूझकर लोगों की जान माल को खतरे में डालने का आपराधिक कृत्य है। इसके लिए सिस्टम सीधे तौर पर जिम्मेदार है। क्योंकि सिस्टम को पता है कि हादसा होगा, बिल्डिंग गिरेगी। सिस्टम का काम सिर्फ इसकी पूर्व सूचना देना नहीं है, बल्कि ये जिम्मेदारी भी सिस्टम की ही है कि या तो वह खतरनाक इमारतों की मरम्मत कर उन्हें सुरक्षित बनाए रखे या फिर उन्हें खाली करवा कर निश्चित समयावधि में नई इमारत बना कर दे। ताकि किराएदार होकर व्यापार से परिवार पाल रहे लोगों को परेशानी न हो।
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