शिवपुरी रेलवे ब्रिज हादसा: प्रशासन की लीपापोती बनाम जमीनी हकीकत, सवालों के घेरे में ठेकेदार और कलेक्टर की 'सुरक्षा' थ्योरी

शिवपुरी (आरएनआई) रेलवे क्रॉसिंग संख्या 59C पर बन रहे ओवरब्रिज (R.O.B.) की स्लैब गिरने से 6 मजदूर घायल हो गए। घटना को लेकर ज़िले में हड़कंप मच गया। अब जिला प्रशासन के बयान से ज्यादा सवाल उठने लगे हैं। कलेक्टर रविंद्र कुमार चौधरी का कहना है कि स्लैब में दरारें पाई गईं थीं, जिसे लेकर 14 जून की रात "नियोजित" रूप से डिस्मेंटलिंग की गई — वह भी सभी सुरक्षा मानकों के पालन के साथ। मगर सवाल ये है — अगर सब कुछ प्लान के मुताबिक और सुरक्षित ढंग से किया गया था, तो फिर 6 मजदूरों की चीखें शिवपुरी की सड़कों तक कैसे गूंज गईं?
घोषणा बनाम हकीकत:
प्रशासन कह रहा है कि डिस्मेंटलिंग ‘सुरक्षित ढंग से’ की गई। लेकिन ज़मीनी सच्चाई ये है कि 6 मजदूर घायल हैं। क्या यह ‘सुरक्षा’ की परिभाषा है? क्या मजदूरों की ज़िंदगी इतनी सस्ती है कि उन्हें ‘नियोजित हादसे’ में झोंक दिया जाए?
ठेकेदार की भूमिका संदिग्ध:
जिस स्लैब को पहले डाला गया, उसमें दरारें कैसे आईं? क्या ये खराब क्वालिटी की सामग्री का नतीजा थी? या फिर जल्दबाज़ी और अनदेखी का परिणाम? और जब दरार सामने आई तो उसी एजेंसी से डिस्मेंटलिंग भी करवाना, क्या ये संभावित दोषियों को ही बचाव का मौका देना नहीं है? प्रशासन की बयानबाज़ी एक 'डैमेज कंट्रोल' कलेक्टर का बयान घटना के बाद आया, जबकि लोगों की आंखों ने देखा कि मौके पर अफरा-तफरी मची थी, घायल मजदूरों को एंबुलेंस तक नहीं मिल रही थी। सवाल यह भी है कि यदि यह "प्लांड गिराया जाना" था, तो मजदूरों को वहां क्यों रखा गया?
गरीब मजदूर फिर बने बलि का बकरा:
हर बार की तरह इस बार भी घायल वही हैं जिनका नाम न तो ठेके की फाइल में होता है और न ही जिम्मेदारी की सूची में मजदूर। जिनके पसीने से पुल खड़ा होता है, उसी पर मलबा भी गिरता है।
रेलवे ब्रिज हादसा ‘नियोजित’ नहीं, बल्कि लापरवाही का सुनियोजित नमूना था। ठेकेदार को बचाने की कवायद में जिला प्रशासन अपने ही क्रेडिबिलिटी को चूर-चूर कर रहा है। यदि वाकई सब कुछ सुरक्षा मानकों के अनुरूप था, तो घायल मजदूरों की जिम्मेदारी कौन लेगा? क्या अब प्रशासन केवल प्रेस नोट से जवाबदेही पूरी कर लेगा?
जनता को चाहिए जवाब — सिर्फ़ बयान नहीं, कार्रवाई।
ठेकेदार और ज़िम्मेदार इंजीनियर पर आपराधिक लापरवाही का मामला दर्ज हो वरना ये हादसे रोज़ की खबर बन जाएंगे।
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