एक उम्मीद उस वादे से कि श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया जी इस क्षेत्र से अपराधियों, माफिया, भ्रष्टाचारियों,कालाबाजारी करने वालों को बाहर खदेड़कर ही दम लेंगें

गुना (आरएनआई) पिछले छह साल में गुना में दस एसपी बदल चुके। जनवरी 2019 में आईपीएस निमिष अग्रवाल का तबादला हुआ था और राहुल कुमार लोढ़ा को गुना भेजा गया था। फरवरी 2020 में उन्हें जब हटाया गया तब चर्चा चली थी कि जुआ माफिया ने उनका तबादला कराया है। उनके बाद तरुण नायक, राजेश कुमार सिंह, राजीव मिश्रा, पंकज श्रीवास्तव, राकेश सगर, विजय खत्री, संजीव कुमार सिन्हा गुना में पदस्थ रहे। इनमें से कुछ वाजिब कारणों से हटे तो कई पॉलिटिकल कारणों से। अप्रैल 2025 में आईपीएस अंकित सोनी की पदस्थापना हुई है।
इस ट्रैक रिकॉर्ड को देखकर तो शायद ही कोई आईपीएस गुना पोस्टिंग चाहेगा। गुना का मिजाज बाकी जिलों से अलग है। यहां के थाने अक्सर इलाके के सबसे प्रभावी नेताओं और उनके दरबारियों की मर्जी से चलते रहे हैं। यह कहने में कोई गुरेज नहीं कि गुना में पुलिसिंग की गिरावट की बड़ी वजह सिपाही से लेकर टीआई तक की पोस्टिंग में नेताओं का सीधा हस्तक्षेप होना रहा है।
जिले में इन छह वर्षों में हर तरह के अपराध बढ़े। जुआ, सट्टा, ऑनलाइन गैंबलिंग और तस्करी के क्षेत्र में इस दरम्यान दस गुना तक वृद्धि हुई। कई अपराधियों की गैंग भी अस्तित्व में आ गईं, यहां गैंगवॉर के समाचार भी छपने लगे। कारण कि बड़े बदमाश कार्यवाही होने पर सिफारिश लगवाना सीख गए। सिफारिशों की गिरावट का ये दौर भी पहले कभी देखने नहीं मिला था। जाहिर है सिफारिश लगाने वाले या तो इन अपराधों की कमाई में हिडन पार्टनर है या फिर इन अपराधियों को बचाने के एवज में उनसे किसी न किसी रूप में उपकृत होते हैं।
इसका परिणाम यह हुआ कि अवैध, अनैतिक कृत्यों से जमकर पैसा कूटने वाले असामाजिक और आपराधिक तत्वों और माफिया पर कार्यवाही का साहस जुटाने में पुलिस के शीर्ष अधिकारी भी कतराने लगे। क्योंकि जिस भी अफसर ने कार्यवाही करने का जोखिम उठाया, अपराधियों को संरक्षण देने वालों और जुआ सट्टे के खुलेआम फड़ चलवाने वालों ने भोपाल से लेकर दिल्ली तक के नेताओं के सामने अफसर की छवि खराब करने में पूरी ताकत लगाई।
यहां कई लोगों की एक ख्वाहिश और रहती है कि उसके इलाके के थानों के दरोगा उनके यसमैन हों, जो समय समय पर या नियमित रूप से उनकी बताई बेगार निपटाया करें। उनके संरक्षण में चलने वाले कामों की ओर आँखें मूंदे रखें और उसके विरोधी को किसी भी कीमत पर न पनपने दें। यानी पुलिस भी एक पॉलिटिकल टूल बनने लगी। दरोगा खासतौर पर "कार्यवाहक" व्यवस्था से उच्च पद पर तैनात जनों को भी कमाई और ग्लैमर की जल्दबाजी है, तो भी अपनी तैनाती के लिए कुछ भी करना सीख गए।
धीरे धीरे थानों के स्टाफ में से कुछ के ऑनलाइन गैंबलिंग और अन्य क्राइम में लिप्त होने या क्रिमिनल को संरक्षण देने की शिकायतें न केवल आम होने लगीं बल्कि खुद आईपीएल से जुड़े पुराने खिलाड़ी सोशल मीडिया पर उनकी लिप्तता के आरोप भी लगाने लगे। गांजा तस्करी में भी कुछ की भूमिका पर सवाल खड़े हुए। इस कालखंड में बेसिक पुलिसिंग पटरी से उतर गई।
आखिर इन हालातों में पुलिसिंग कैसे बचे भी तो कैसे?
नए एसपी अंकित सोनी के सामने भी शायद सबसे बड़ा सवाल यही होगा। चुनौतियां भी यही होंगी कि किस अपराधी को अपराधी माना जाए और किस को किसी का खास या किसी का कार्यकर्ता! इन हालातों के बीच बीते रोज सामने आई ट्रांसफर लिस्ट देखकर लगता है कि पुलिसिंग को पटरी पर लाने की कोशिश की जा रही है। नई लिस्ट के सामने आने के बाद कइयों के चूल्हे कल से जरूर ठंडे पड़ गए होंगे। कुछ की पेशानी पर बल भी पड़ा होगा, जमी जमाई बिसात बिगड़ने से ऐसा होना स्वाभाविक है। और कुछ आदत के मुताबिक शिकायती लहज़े में ऊपर कानाफूसी भी करेंगे ही।
ऊपर से ऑन लाइन गैंबलिंग (आईपीएल सट्टा) के बड़े सटोरियों, नशा तस्करों, पैडलरों के विरुद्ध अभियान चलाकर कार्यवाही भी होती दिख रही है। इन मामलों में आरोपियों को बचाने के लिए कितने और किस लेबल के सिफारिशी फोन आ रहे होंगे, ये तो पुलिस के अफसर ही जानते होंगे। पर कार्यवाही फिर भी चल रही है, जो स्वागत योग्य है। सरकार की छवि निखारने वाली है। जनता को इसकी दरकार थी। अन्यथा गुना तो "गुनाहगढ़" बनने की दिशा में बढ़ ही रहा है।
आमजन चाहता है कि अपराध के खिलाफ ठोस और प्रभावी कार्यवाही हो। माफिया पर अंकुश लगे। आमजन ये भी पता है कि कौन कौन लोग अपराधियों को संरक्षण देते हैं। आमजन ये भी जानता है कि यहां के कुछ इलाकों में राजनीति का लेबल क्या से क्या हो चला है, अपराधियों और दागियों के बचाव या उन्हें रियायत देने की सिफारिश करना ही कुछ लोगों के लिए राजनीति है।
लेकिन फिर भी एक उम्मीद है श्रीमंत ज्योतिरादित्य सिंधिया जी के उस वादे से, जिसमें उन्होंने कहा है कि वो इस क्षेत्र से अपराधियों, माफिया,भ्रष्टाचारियों, कालाबाजारी करने वालों को बाहर खदेड़कर ही दम लेंगें। पार्टी और सरकार की छवि को उज्ज्वल करने वाले इस वादे को पूरा करने के लिए नियमित सुपरविजन होना तो जरूरी है ही। साथ ही साथ कार्यवाही में रोड़ा अटकाने वालों को भी शन्ट करना जरूरी है। बिना इसके बहुत अच्छे परिणाम आएंगे, मुश्किल है।
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