विदेश सेवा संस्थान में माया कुलश्रेष्ठ ने कथक से मचाई धूम, कहा- कला को समाज सेवा में लगाना सच्ची साधना
विदेश सेवा संस्थान में आयोजित एक विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम में दुनिया भर से आए विदेशी प्रतिनिधियों और राजनयिकों ने माया कुलश्रेष्ठ की कथक नृत्य कला को खूब सराहा।

नई दिल्ली (आरएनआई) भारतीय शास्त्रीय नृत्य की मशहूर कथक नृत्यांगना माया कुलश्रेष्ठ ने हाल ही में विदेश मंत्रालय के विदेश सेवा संस्थान में आयोजित एक विशेष सांस्कृतिक कार्यक्रम में अपनी कथक कला का लेक्चर-डेमोंस्ट्रेशन प्रस्तुत कर धूम मचाई। आयोजन में दुनिया भर से आए विदेशी प्रतिनिधियों और राजनयिकों ने माया कुलश्रेष्ठ की प्रतिभा को देख खूब तालियां बजाईं। साथ ही भारतीय संस्कृति की जीवंतता को जाना।
कार्यक्रम में माया कुलश्रेष्ठ ने न केवल कथक की तकनीकी बारीकियों को प्रस्तुत किया। साथ ही इसके आध्यात्मिक और सामाजिक पहलुओं पर भी प्रकाश डाला। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी कला से भारत का गौरव बढ़ाने वाली माया को ‘पंडित बिरजू महाराज राष्ट्रीय पुरस्कार’ से सम्मानित किया जा चुका है।
माया कुलश्रेष्ठ ने 'अंजना वेलफेयर सोसाइटी' की स्थापना कर यह सिद्ध कर दिया है कि कला सिर्फ रंगमंच तक सीमित नहीं, बल्कि वह समाज में बदलाव लाने का सशक्त माध्यम भी बन सकती है। यह संस्था कला और संस्कृति के साथ-साथ शिक्षा, स्वास्थ्य और महिला सशक्तीकरण जैसे क्षेत्रों में भी निरंतर कार्य कर रही है। माया का मानना है कि जब कला समाज के लिए उपयोगी हो जाए, तब वह साधना से सेवा की ओर बढ़ती है।
कार्यक्रम के दौरान जब माया से भारतीय कला-जगत की चुनौतियों पर सवाल किया गया, तो उन्होंने गुटबाज़ी और परिवारवाद जैसी समस्याओं को उजागर किया। उन्होंने कहा कि भारतीय कला आत्मा को छूती है, लेकिन दुर्भाग्यवश आज भी कई प्रतिभाएं सिर्फ इसलिए पीछे रह जाती हैं क्योंकि वे किसी प्रभावशाली पृष्ठभूमि से नहीं आतीं। कला में चयन का मापदंड केवल प्रतिभा और साधना होना चाहिए, न कि पारिवारिक कनेक्शन।
'फ्यूजन' को लेकर माया कुलश्रेष्ठ ने बेहद संतुलित और सारगर्भित दृष्टिकोण रखा। उन्होंने कहा कि सच्चा फ्यूजन तब होता है जब दो कलाएं आत्मा के स्तर पर संवाद करती हैं, न कि केवल तकनीकी स्तर पर जुड़ती हैं। इस अवसर पर उनकी प्रस्तुति ‘ताल चक्र’ को दर्शकों ने खूब सराहा। इसमें उन्होंने कथक को उसकी मूल शुद्धता के साथ प्रस्तुत किया और आधुनिकता के साथ एक सौम्य संतुलन कायम रखा।
विदेश मंत्रालय के इस आयोजन में उपस्थित कई देशों के राजनयिकों और सांस्कृतिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने माया की प्रस्तुति और विचारों की खुले दिल से प्रशंसा की। माया ने जिस तरह कथक के माध्यम से भारतीय संस्कृति को वैश्विक मंच पर प्रस्तुत किया, वह सच में प्रेरणास्पद है। माया ने कहा कि कला आत्मा को छूती है, और जब वह समाज से जुड़े तो वह युगों तक जीवित रहती है।
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