‘रक्षक ही बन गया लुटेरा’, सुप्रीम कोर्ट का ITBP के बर्खास्त कांस्टेबल की सेवा बहाली से इनकार
देश की सर्वोच्च अदालत ने आईटीबीपी के बर्खास्त कांस्टेबल की सेवा बहाली से इनकार कर दिया है। बता दें कि, कांस्टेबल को एक कैश बॉक्स की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा गया था, जिसे तोड़कर उसने कैश चुराए और फरार हो गया। मामले में अदालत ने यह भी कहा कि यह एक गंभीर और चौंकाने वाली घटना है और ऐसे मामलों में जीविका का अधिकार जैसे तर्क काम नहीं आते।

नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट ने इंडो-तिब्बत बॉर्डर पुलिस (आईटीबीपी) के उस कांस्टेबल की बर्खास्तगी को बरकरार रखा है जिसने वेतन वितरण के लिए रखे गए कैश बॉक्स से पैसे चुरा लिए थे। मामले में अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा, 'जिसे सुरक्षा का जिम्मा दिया गया था, वही लुटेरा बन गया। ऐसे गंभीर कृत्य के लिए सुरक्षाबल में कोई जगह नहीं हो सकती।'
आईटीबीपी के कांस्टेबल जगेश्वर सिंह को 4 और 5 जुलाई, 2005 की रात को कैश बॉक्स की सुरक्षा का जिम्मा सौंपा गया था। ये पैसे कंपनी के जवानों को वेतन के रूप में देने के लिए रखे गए थे। लेकिन जगेश्वर सिंह ने इस भरोसे को तोड़ते हुए कैश बॉक्स का ताला तोड़ा, उसमें रखे लाखों रुपये चुराए और उन्हें पोस्ट से करीब 200 मीटर दूर छुपा कर फरार हो गया। जब कंपनी कमांडर को यह जानकारी मिली तो उन्होंने तत्काल सर्च ऑपरेशन चलाया, लेकिन जगेश्वर सिंह का कुछ पता नहीं चला। बाद में कमांडिंग ऑफिसर को सूचित किया गया और 6 जुलाई 2005 को एफआईआर दर्ज की गई। जांच और गिरफ्तारी के बाद जगेश्वर सिंह ने अपराध कबूल किया, जिसके आधार पर 14 नवंबर 2005 को उन्हें सेवा से बर्खास्त कर दिया गया।
जगेश्वर सिंह ने हाईकोर्ट में बर्खास्तगी को चुनौती दी और दावा किया कि उसका कबूलनामा दबाव में लिया गया था। हालांकि, अदालत ने यह दलील खारिज कर दी, लेकिन आईटीबीपी को सजा पर दोबारा विचार करने को कहा।
सुप्रीम कोर्ट की दो-न्यायाधीशों की पीठ, जिसमें जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह शामिल थे, ने हाईकोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें सजा पर पुनर्विचार करने को कहा गया था। अदालत ने कहा, 'जब कोई सुरक्षा बल का जवान ऐसा गंभीर और नैतिक पतन वाला अपराध करता है, तो उसे कड़ी से कड़ी सजा देना जरूरी होता है। ऐसे कर्मियों के लिए बल में कोई जगह नहीं होनी चाहिए। यह घटना सिर्फ चोरी नहीं है, बल्कि विश्वासघात भी है।'
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी ध्यान दिया कि आरोपी जगेश्वर सिंह का पिछला रिकॉर्ड भी अच्छा नहीं था। उनके खिलाफ पहले भी आठ बार अनुशासनात्मक कार्रवाई हो चुकी थी। हालांकि अदालत ने माना कि पिछले मामलों को सीधे मौजूदा मामले से जोड़ना सही नहीं होगा, लेकिन यह जरूर दिखाता है कि वह बार-बार अनुशासन तोड़ते रहे।
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