मंजूरी के बावजूद किसी हाईकोर्ट ने नहीं की तदर्थ जजों की नियुक्ति की सिफारिश, पांच माह पूर्व दी थी अनुमति
18 लाख से अधिक लंबित आपराधिक मामलों को देखते हुए शीर्ष अदालत ने 30 जनवरी को सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति को मंजूरी देते हुए कहा था कि इनकी संख्या अदालत की कुल स्वीकृत संख्या के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। संविधान का अनुच्छेद 224ए लंबित मामलों से निपटने में मदद के लिए उच्च न्यायालयों में तदर्थ न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति की अनुमति देता है।

नई दिल्ली (आरएनआई) सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी के बावजूद देश के किसी भी हाईकोर्ट ने सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफारिश नहीं की है। शीर्ष अदालत ने करीब पांच माह पूर्व लंबित मामलों के निपटारे में तेजी लाने के लिए उच्च न्यायालयों को तदर्थ न्यायाधीशों को नियुक्त करने की अनुमति दी थी। देश में 25 हाईकोर्ट हैं। 11 जून तक किसी भी उच्च न्यायालय कॉलेजियम ने केंद्रीय कानून मंत्रालय को इस संबंध में कोई प्रस्ताव नहीं भेजा।
18 लाख से अधिक लंबित आपराधिक मामलों को देखते हुए शीर्ष अदालत ने 30 जनवरी को सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति को मंजूरी देते हुए कहा था कि इनकी संख्या अदालत की कुल स्वीकृत संख्या के 10 प्रतिशत से अधिक नहीं होगी। संविधान का अनुच्छेद 224ए लंबित मामलों से निपटने में मदद के लिए उच्च न्यायालयों में तदर्थ न्यायाधीश के रूप में सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति की अनुमति देता है।
एक मामले को छोड़कर, सेवानिवृत्त न्यायाधीशों को हाईकोर्ट के तदर्थ न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की कोई मिसाल नहीं है। शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट में इन नियुक्तियों के संबंध में 20 अप्रैल, 2021 के अपने एक फैसले में कुछ शर्तें लगाई थी। बाद में तत्कालीन सीजेआई जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई (वर्तमान सीजेआई) व जस्टिस सूर्यकांत की विशेष पीठ ने कुछ शर्तों में ढील दी। पीठ ने कहा कि हर हाईकोर्ट को तदर्थ जजों की नियुक्ति दो से पांच तक सीमित रखनी चाहिए। यह कुल स्वीकृत संख्या के 10 प्रतिशत से अधिक न हो।
संबंधित हाईकोर्ट कॉलेजियम इन नियुक्तियों के लिए उम्मीदवारों के नाम या सिफारिशें विधि मंत्रालय के न्याय विभाग को भेजता हैं। इसके बाद विभाग उम्मीदवारों का और विवरण उपलब्ध कराते हुए सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को इस प्रस्ताव को भेजता है। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम इस पर फैसला लेते हुए सरकार को चयनित व्यक्तियों को न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश करता है। राष्ट्रपति नवनियुक्त न्यायाधीश की नियुक्ति की अनुमति देते हैं।
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