'जजों की नियुक्ति को नियंत्रित करना चाहती सरकार', जस्टिस वर्मा मामले में सिब्बल का गंभीर आरोप
जस्टिस वर्मा के पक्ष में बोलते हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि 'मैं पूरी जिम्मेदारी से कह रहा हूं कि वे एक बेहतरीन जज हैं, जिनके सामने मैंने बहस की है। आप हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के किसी भी वकील के पूछ सकते हैं।

नई दिल्ली (आरएनआई) राज्यसभा सांसद कपिल सिब्बल ने मंगलवार को आरोप लगाया कि सरकार जस्टिस वर्मा के महाभियोग के जरिए जजों की नियुक्ति पर नियंत्रण स्थापित करना चाहती है। सिब्बल ने कहा कि सरकार कॉलेजियम व्यवस्था को खत्म कर नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन (NJAC) को लागू करना चाहती है। वरिष्ठ वकील ने आरोप लगाया कि सरकार जस्टिस वर्मा और जस्टिस शेखर यादव के मामले में पक्षपात पूर्व कार्रवाई कर रही है।
कपिल सिब्बल ने कहा कि जस्टिस शेखर यादव पर बीते साल सांप्रदायिक टिप्पणी करने का आरोप है और उनके खिलाफ एक विपक्षी सांसद ने राज्यसभा में महाभियोग प्रस्ताव पेश किया था, लेकिन राज्यसभा सभापति ने अभी तक उसकी मंजूरी नहीं दी है। गौरतलब है कि जस्टिस यशवंत वर्मा के दिल्ली स्थित आवास पर बीते साल मार्च में आग लग गई थी। उस दौरान उनके घर से बड़ी मात्रा में जले हुए नोट बरामद हुए थे। इसके बाद जस्टिस वर्मा का इलाहाबाद उच्च न्यायालय तबादला कर दिया गया था। साथ ही सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति की जांच में भी जस्टिस वर्मा को दोषी पाया था। हालांकि जस्टिस वर्मा ने अपने ऊपर लगे आरोपों से इनकार किया था।
केंद्रीय मंत्री किरेन रिजिजू ने बीते दिनों बताया था कि जस्टिस वर्मा के खिलाफ संसद सत्र में महाभियोग प्रस्ताव लाया जाएगा। मंगलवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कपिल सिब्बल ने कहा कि सरकार की इच्छा कॉलेजियम सिस्टम को खत्म करने और जजों की नियुक्ति पर नियंत्रित स्थापित करने की है। जस्टिस वर्मा के पक्ष में बोलते हुए कपिल सिब्बल ने कहा कि 'मैं पूरी जिम्मेदारी से कह रहा हूं कि वे एक बेहतरीन जज हैं, जिनके सामने मैंने बहस की है। आप हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के किसी भी वकील के पूछ सकते हैं। आप इलाहाबाद में उनके बारे में पूछ सकते हैं।'
राज्यसभा सांसद ने सवाल उठाते हुए पूछा कि एक जज के खिलाफ सबूत नहीं हैं तो भी उनके खिलाफ कार्रवाई की जा रही है, जबकि जिनके खिलाफ सबूत हैं और मामला पब्लिक डोमेन में है तो भी कार्रवाई नहीं हो रही है। कपिल सिब्बल ने सरकार पर जस्टिस शेखर यादव को बचाने का आरोप लगाया।
कॉलेजियम सिस्टम वह प्रक्रिया है जिससे सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति और तबादले किए जाते हैं। इसमें सरकार का दखल नहीं होता। कॉलेजियम भारत के चीफ़ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठतम जजों का एक समूह है। ये पांच लोग मिलकर तय करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट में कौन जज होगा। ये नियुक्तियाँ हाई कोर्ट से की जाती हैं और सीधे तौर पर भी किसी अनुभवी वकील को भी हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया जा सकता है। हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति भी कॉलेजियम की सलाह से होती है जिसमें सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस, हाई कोर्ट के चीफ़ जस्टिस और राज्य के राज्यपाल शामिल होते हैं।
साल 2014 में सरकार संविधान में 99वां संशोधन करके नेशनल ज्यूडिशियल अप्वाइंटमेंट कमीशन (एनजेएसी) अधिनियम लेकर आई। इसमें सरकार ने कहा कि चीफ़ जस्टिस और सुप्रीम कोर्ट- हाई कोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम की जगह अब एनजेएसी के प्रावधानों के तहत काम हो। इस कमिशन में छह लोगों को सदस्य बनाने का प्रावधान किया गया है जिनमें, चीफ़ जस्टिस ऑफ़ इंडिया, केंद्रीय क़ानून मंत्री, सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठतम जस्टिस और दो विशेषज्ञ शामिल होंगे। दो विशेषज्ञों का चयन चयन प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस के तीन सदस्यीय पैनल को करना था। यह प्रावधान भी किया गया कि दो विशेषज्ञ सदस्य हर तीन साल पर बदलते रहेंगे। हालांकि साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।
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