'न्याय में मानव मस्तिष्क की जगह तकनीक को नहीं लेनी चाहिए'; लंदन में बोले सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस
सीजेआई बीआर गवई ने कहा कि न्यायिक फैसलों में तकनीक मानव मस्तिष्क का विकल्प नहीं, पूरक होनी चाहिए। लंदन में उन्होंने कहा कि विवेक, सहानुभूति और न्यायिक व्याख्या जरूरी हैं। तकनीकी नवाचारों के साथ मानव निगरानी व नैतिकता भी ज़रूरी है।

लंदन (आरएनआई) सीजेआई जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि न्यायिक निर्णय लेने में प्रौद्योगिकी को मानव मस्तिष्क की जगह नहीं लेनी चाहिए, बल्कि उसका पूरक होना चाहिए। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि विवेक, सहानुभूति और न्यायिक व्याख्या का मूल्य अपूरणीय है। वे लंदन विश्वविद्यालय के स्कूल ऑफ ओरिएंटल एंड अफ्रीकन स्टडीज (एसओएएस) में भारतीय कानूनी प्रणाली में प्रौद्योगिकी की भूमिका पर बोल रहे थे।
सीजेआई ने कहा कि न्यायपालिका स्वचालित कारण सूचियों, डिजिटल कियोस्क और आभासी सहायकों जैसे नवाचारों का स्वागत करती है, लेकिन इसे यह सुनिश्चित करना चाहिए कि मानवीय निगरानी, नैतिक दिशा-निर्देश और मजबूत प्रशिक्षण उनके कार्यान्वयन का अभिन्न अंग हों।
जस्टिस गवई ने बताया कि भारतीय न्यायपालिका देश की सांविधानिक और सामाजिक वास्तविकताओं के अनुरूप घरेलू नैतिक ढांचे को विकसित करने के लिए अच्छी स्थिति में है। उन्होंने कहा, हमारे पास समानता, सम्मान और न्याय के हमारे मूल्यों को प्रतिबिंबित करने वाली प्रणालियों का निर्माण करने के लिए तकनीकी विशेषज्ञता, न्यायिक दूरदर्शिता और लोकतांत्रिक जनादेश है। एजेंसी
सीजेआई ने कहा, मेरा दृढ़ विश्वास है कि न्याय तक पहुंच सिर्फ न्यायपालिका की जिम्मेदारी नहीं है। यह एक साझा राष्ट्रीय प्रतिबद्धता है। विधि विद्यालयों, नागरिक समाज, कानूनी सहायता संस्थानों और सरकारों को ऐसे तकनीकी मॉडल विकसित करने और बढ़ावा देने के लिए एकजुट होकर काम करना चाहिए जो सुलभ, पारदर्शी और समावेशी हों।
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