भारतीय तकनीक से चीन में बने हथियारों को मुंहतोड़ जवाब, अमेरिकी विशेषज्ञ स्पेंसर का विश्लेषण

पाकिस्तान के साथ चार दिन चली इस जंग में भारत के स्वदेश निर्मित आधुनिक उपकरणों के आगे चीन निर्मित हथियार बुरी तरह मात खा गए। यह बात अमेरिकी लेखक और रक्षा विशेषज्ञ जॉन डल्ब्यू स्पेंसर ने अपने एक ताजा विश्लेषण में कही है। 

May 30, 2025 - 11:24
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भारतीय तकनीक से चीन में बने हथियारों को मुंहतोड़ जवाब, अमेरिकी विशेषज्ञ स्पेंसर का विश्लेषण

नई दिल्ली/बीजिंग (आरएनआई) भारत ने एक दशक पहले रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करने की जो कवायद शुरू की थी, उसका असर ऑपरेशन सिंदूर की सफलता में साफ नजर आता है। पाकिस्तान के साथ चार दिन चली इस जंग में भारत के स्वदेश निर्मित आधुनिक उपकरणों के आगे चीन निर्मित हथियार बुरी तरह मात खा गए। यह बात अमेरिकी लेखक और रक्षा विशेषज्ञ जॉन डल्ब्यू स्पेंसर ने अपने एक ताजा विश्लेषण में कही है।

अमेरिका सेना के सेवानिवृत्त अधिकारी और मॉर्डन वार इंस्टीट्यूट से जुड़े शोधकर्ता स्पेंसर ने अपने सोशल मीडिया अकाउंट पर ऑपेरशन सिंदूर के दौरान भारत और पाकिस्तान की तरफ से इस्तेमाल हथियारों का तुलनात्मक ब्योरा सामने रखा। उन्होंने लिखा है कि भारत की ब्रह्मोस मिसाइल के अलावा आकाश और आकाशतीर जैसी प्रणालियों के आगे पाकिस्तान के जेएफ-17 थंडर और एचक्यू-9/एचक्यू-16 जैसी मिसाइलें बेदम ही साबित हुईं, जिन्हें उसने चीन से हासिल किया था।

रूस में विकसित और मुख्यत: भारत में निर्मित ब्रह्मोस सुपरसोनिक मिसाइल ने दुश्मन की नजर में आए बिना वार करने की अपनी क्षमता साबित की।

डीआरडीओ में विकसित सतह से हवा में मार करने वाली आकाश मिसाइल ने आकाशतीर कमांड एंड कंट्रोल सिस्टम के साथ वायु रक्षा नेटवर्क को मजबूती दी।

इस जंग में रुद्रम एंटी-रेडिएशन मिसाइल, नेत्र पूर्व चेतावनी सिस्टम, एम777 हॉवित्जर, टी-72 टैंक, सुखोई और मिराज जैसे विमानों ने भी अपना दम दिखाया।

भारत ने आधुनिक रक्षा शक्ति में बदलने की शुरुआत 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के साथ कर दी थी, जिनकी मेक इन इंडिया पहल का स्पष्ट लक्ष्य ही था-विदेशी हथियारों के आयात पर निर्भरता घटाना और विश्वस्तरीय घरेलू रक्षा उद्योग का निर्माण।

रक्षा क्षेत्र में 74% तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ने संयुक्त उपक्रमों का रास्ता खोला और कुछ ही वर्षों में ब्रह्मोस मिसाइल, के9 वज्र हॉवित्जर और एके-203 राइफल जैसे रक्षा उपकरण भारत में ही बनने लगे।

पाकिस्तानी हथियार और चीन की प्रणालियां साबित हुई नाकाम

चीन की तरफ से डिजाइन किया गया और पाकिस्तान निर्मित जेएफ-17 थंडर (ब्लॉक II/III) हवाई श्रेष्ठता के मामले में भारतीय विमानों के मुकाबले कमतर रहा।

रूस निर्मित एस-300 की चीनी नकल एचक्यू-9/एचक्यू-16 को भारतीय हवाई हमले रोकने के लिए तैनात किया गया लेकिन भारत के जैमिंग सिस्टम के आगे विफल रहीं।

पुरानी छोटी और मध्यम दूरी की मिसाइलें एलवाई-80 और एफएम-90 भारत के कम ऊंचाई वाले ड्रोन और सटीक हथियारों का पता लगाने या रोकने में असमर्थ थीं।

रक्षा विशेषज्ञ स्पेंसर कहते हैं, 2020 में कोविड महामारी और फिर चीन के गलवान घाटी की झड़प ने विदेश सप्लाई चेन बाधित होने जैसी चुनौतियों को उजागर किया तो आत्मनिर्भरता की नीति को मोदी सरकार ने अपना राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत बना लिया। प्रमुख रक्षा आयात नियंत्रित किए गए, सशस्त्र बलों को आपातकालीन खरीद शक्तियां मिलीं व स्वदेशी स्तर पर रिसर्च, डिजाइन और उत्पादन बढ़ाया गया। इस वर्ष भारत रक्षा खरीद में घरेलू सामग्री की हिस्सेदारी 30% से बढ़ाकर 65% कर चुका है और दशक के अंत तक इसे 90% करने का लक्ष्य है।

भारत के साथ हालिया संघर्ष में पाकिस्तान की ओर से इस्तेमाल किए गए चीन निर्मित हथियारों के प्रदर्शन पर चीनी सेना ने टिप्पणी करने से इन्कार कर दिया है। चीनी रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता सीनियर कर्नल झांग शियाओगांग से जब मीडिया ब्रीफिंग में पूछा गया कि भारत ने चीन निर्मित पीएल-15ई मिसाइल को मार गिराया था तो इस पर झांग ने कहा कि यह चीन का उन्नत मिसाइल है। इसे हमने पाकिस्तान को निर्यात किया था। रही बात मिसाइल को मार गिराने की तो इस पर टिप्पणी करना उचित नहीं होगा। 


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