जस्टिस यादव मामले में सिब्बल के सवाल, पूछा- धनखड़ ने महाभियोग प्रस्ताव पर क्यों नहीं की कार्रवाई?
मुस्लिमों पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के मामले में विपक्ष के 55 सासंदों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया था। राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने नोटिस को सुप्रीम कोर्ट के महासचिव से साझा करने के लिए कहा था। इस पर सिब्बल ने सवाल उठाए हैं।

नई दिल्ली (आरएनआई) मुसलमानों के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव को लेकर राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल ने सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि मामले में राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने महाभियोग प्रस्ताव लाने के नोटिस पर कोई कार्रवाई क्यों नहीं की? ऐसा लगता है कि सरकार न्यायाधीश को बचाने की कोशिश कर रही है। जस्टिस की टिप्पणी पूरी तरह से सांप्रदायिक थी।
सिब्बल ने कहा कि पूरी घटना में भेदभाव की बू आती है, क्योंकि एक ओर तो राज्यसभा के महासचिव ने भारत के प्रधान न्यायाधीश को पत्र लिखकर कहा कि वे यादव के खिलाफ आंतरिक जांच न करें, क्योंकि उनके खिलाफ उच्च सदन में एक याचिका लंबित है। मगर न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा के मामले में ऐसा नहीं किया गया। यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है। जब संवैधानिक पद पर बैठा व्यक्ति छह महीने में संवैधानिक दायित्वों को पूरा नहीं करता है तो सवाल उठना लाजिमी है।
कपिल सिब्बल ने कहा कि 13 दिसंबर 2024 को हमने राज्यसभा के सभापति को महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया था। इस पर 55 सांसदों के हस्ताक्षर थे, छह महीने बीत गए हैं, लेकिन कोई कदम नहीं उठाया गया है। मैं संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों से पूछना चाहता हूं कि उनकी जिम्मेदारी सिर्फ यह सत्यापित करना है कि हस्ताक्षर हैं या नहीं, क्या इसमें छह महीने लगने चाहिए? एक और सवाल है कि क्या यह सरकार शेखर यादव को बचाने की कोशिश कर रही है?
उन्होंने कहा कि विहिप के निर्देश पर यादव ने उच्च न्यायालय परिसर में भाषण दिया था और फिर मामला उच्चतम न्यायालय में आया जिसने कार्रवाई की। यादव से दिल्ली में पूछताछ की गई। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से भी रिपोर्ट मांगी गई। मुझे तो यह तक सुनने में आया है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश ने नकारात्मक रिपोर्ट दी थी और इस बीच 13 फरवरी 2025 को अध्यक्ष ने कहा कि इस मामले को संवैधानिक तरीके से देखा जाना चाहिए और संसद इसे आगे बढ़ा सकती है।
सिब्बल ने कहा कि राज्यसभा सचिवालय ने प्रधान न्यायाधीश को पत्र भेजकर कोई कार्रवाई न करने को कहा है और कहा गया है कि इस मामले पर कार्रवाई की जाएगी, क्योंकि महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस है और सर्वोच्च न्यायालय को यादव के खिलाफ अपनी आंतरिक प्रक्रिया रोकनी चाहिए।
सिब्बल ने कहा कि मुझे समझ में नहीं आ रहा कि ऐसा किस आधार पर हुआ? क्या चेयरमैन को सीजेआई को ऐसा पत्र लिखना चाहिए? आतंरिक प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की अपनी है, इसका महाभियोग प्रस्ताव से कोई संबंध नहीं है। अभी तक महाभियोग प्रस्ताव को स्वीकार भी नहीं किया गया है, छह महीने हो गए हैं और केवल हस्ताक्षरों का सत्यापन किया जा रहा है।
सिब्बल ने पूछा कि जब महाभियोग प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया गया तो इसका सुप्रीम कोर्ट की आंतरिक जांच से क्या संबंध है और यदि इसे स्वीकार भी कर लिया गया है तो भी इसका जांच से क्या संबंध है? जस्टिस यादव ने जो कहा वह सबके सामने है, इसमें कोई संदेह नहीं है। उन्होंने इस पर कोई विवाद नहीं किया है। सुप्रीम कोर्ट को यह तय करना था कि क्या उन्हें ऐसा कहना चाहिए था, क्योंकि हमारे अनुसार यह पूरी तरह सांप्रदायिक बयान है। यह भी तय करना था कि क्या उन्हें यह बयान देने के बाद जज की कुर्सी पर बैठना चाहिए।
कपिल सिब्बल ने कहा कि राज्यसभा के सभापति ने न्यायमूर्ति वर्मा के खिलाफ आंतरिक जांच पर पत्र क्यों नहीं लिखा? तो क्या यह सरकार शेखर यादव को बचाना चाहती है, हमें लगता है कि वे उसे बचाना चाहते हैं। या तो कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी या फिर वे महाभियोग नोटिस में कुछ हस्ताक्षरों को खारिज कर देंगे और प्रस्ताव को खारिज कर देंगे ताकि हम सर्वोच्च न्यायालय जाएं और इसमें समय लगे जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि शेखर यादव 2026 में सेवानिवृत्त हो जाएं।
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