जवाहर बाग कांड: मथुरा की जनता नहीं भूली अपने शहीदों को, सरकार की वादाखिलाफी आज भी सवालों के घेरे में

Jun 2, 2025 - 09:25
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जवाहर बाग कांड: मथुरा की जनता नहीं भूली अपने शहीदों को, सरकार की वादाखिलाफी आज भी सवालों के घेरे में

मथुरा (आरएनआई) जवाहर बाग कांड को बीते कई साल हो चुके हैं, लेकिन मथुरा की ज़मीन पर उस दिन की चीखें आज भी गूंजती हैं। 2 जून 2016 को हुए इस हृदयविदारक कांड में तत्कालीन एसपी सिटी मुकुल द्विवेदी और इंस्पेक्टर संतोष यादव ने अपने प्राणों की आहुति दी थी। यह दिन न केवल मथुरा के इतिहास का काला पन्ना है, बल्कि एक ऐसा घाव है जो आज तक नहीं भरा।

इस कांड के दौरान, जवाहर बाग पर अवैध कब्जा जमाए बैठे उपद्रवियों को हटाने गई पुलिस पर अचानक हिंसक हमला हुआ, जिसमें ये दो वीर अधिकारी शहीद हो गए। पूरा प्रदेश सन्न रह गया था। उस समय समाजवादी पार्टी की सरकार सत्ता में थी, और भारतीय जनता पार्टी विपक्ष में बैठी थी। भाजपा ने इस मुद्दे को जोरों-शोरों से उठाया और शहीदों की शहादत को राजनीति से ऊपर बताते हुए जवाहर बाग में स्मारक बनाने का वादा किया था।

लेकिन आज, इतने वर्षों बाद भी न कोई स्मारक बना, न कोई स्थायी श्रद्धांजलि स्थल तैयार हुआ। सिर्फ वादा हुआ, निभाया नहीं गया।

मथुरा की जनता आज भी अपने शहीद अधिकारियों को नहीं भूली। स्थानीय लोगों का कहना है कि सरकारें आती हैं, जाती हैं, लेकिन शहादत का सम्मान कभी भी राजनीति की बलि नहीं चढ़ना चाहिए। कई बार इस मुद्दे को विधानसभा और स्थानीय निकायों में उठाया गया, लेकिन हर बार यह केवल चुनावी वादों और जुमलों तक ही सीमित रह गया।

शहीद एसपी मुकुल द्विवेदी के परिजनों ने भी बार-बार सरकार से स्मारक निर्माण की माँग की, पर कोई ठोस कार्यवाही नहीं हुई। वहीं इंस्पेक्टर संतोष यादव के गांव में आज भी लोग उनकी बहादुरी के किस्से बच्चों को सुनाते हैं, लेकिन सरकारी उदासीनता पर दुख भी जताते हैं।

जवाहर बाग कांड आज भी उठाता है ये बड़े सवाल:
शहीदों की याद में वादा किया गया स्मारक अब तक क्यों नहीं बना?

क्या सरकारें केवल चुनाव के समय ही शहादत की बात करेंगी?

क्या जनता की संवेदना को भी वोट बैंक के चश्मे से देखा जा रहा है?

जनता की मांग:
जवाहर बाग में स्थायी स्मारक बने

शहीदों के नाम पर पुलिस प्रशिक्षण संस्थान या पार्क की स्थापना हो

प्रत्येक वर्ष 2 जून को "मथुरा शौर्य दिवस" के रूप में मनाया जाए

आज मथुरा फिर सवाल पूछ रहा है – "क्या सरकारें शहीदों को केवल नारों में ही याद रखेंगी, या कभी ज़मीन पर भी श्रद्धांजलि दी जाएगी?"

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