हाईकोर्ट ने कहा- राधारानी का वर्णन पौराणिक है कानूनी साक्ष्य नहीं, पक्षकार बनाने की अर्जी खारिज
अदालत ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि व शाही ईदगाह से जुड़े सिविल वाद सात में राधारानी को श्रीकृष्ण की पहली पत्नी बता पक्षकार बनने की मांग वाली अर्जी खारिज कर दी।

प्रयागराज (आरएनआई) इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि की सह-मालकिन होने का राधारानी का दावा पौराणिक ग्रंथों में लिखे तथ्यों पर आधारित है। राधारानी श्रीकृष्ण जन्मभूमि से जुड़ी संपत्ति की सह-स्वामिनी हैं, यह केवल पौराणिक ग्रंथों से साबित नहीं किया जा सकता है। जब तक इस दावे के समर्थन में ठोस सबूत नहीं आते हैं, तब तक कानून की नजर में यह सबसे कमजोर साक्ष्य माना जाएगा।
लिहाजा, वर्तमान सिविल वाद में राधारानी को पक्षकार बनाने का दावा पोषणीय नहीं है। इस टिप्पणी संग न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की अदालत ने श्रीकृष्ण जन्मभूमि व शाही ईदगाह से जुड़े सिविल वाद सात में राधारानी को श्रीकृष्ण की पहली पत्नी बता पक्षकार बनने की मांग वाली अर्जी खारिज कर दी। अब मामले की सुनवाई चार जुलाई को होगी। यदि भविष्य में कोई ठोस प्रमाण प्रस्तुत किया जाता है तो राधारानी को पक्षकार बनाने पर पुनर्विचार किया जा सकता है।
श्रीजी राधारानी वृषभानु कुमारी वृंदावनी’ की ओर से अधिवक्ता रीना एन. सिंह ने खुद को राधारानी का भक्त (नेक्स्ट फ्रेंड) बताकर लंबित सिविल वाद नंबर सात में पक्षकार बनने की अर्जी दाखिल की थी। तर्क था कि वह भगवान श्रीकृष्ण लला विराजमान की कानूनी पत्नी हैं। दोनों अनादिकाल से देवता के रूप में पूजे जाते हैं।
वह मथुरा की 13.37 एकड़ की उस जमीन की संयुक्त मालकिन हैं, जिस पर मौजूदा समय में शाही ईदगाह मस्जिद बनी है। इस दावे के समर्थन में उन्होंने सनातन धर्मग्रंथों जैसे स्कंद पुराण, श्रीमद्भागवत और ब्रह्मवैवर्त पुराण का हवाला दिया था।
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