भारत-पाक जंग के 31 दिन बाद अमेरिका ने PAK आर्मी चीफ को भेजा न्यौता, क्या खेल रच रहे डोनाल्ड ट्रंप?

पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल सैयद असीम मुनीर अहमद शाह 14 जून को अमेरिकी सेना दिवस के अवसर पर वॉशिंगटन डीसी की यात्रा पर जाने वाले हैं। आखिर डोनाल्ड ट्रंप के इस कदम के ज़रिये क्या खेल रच रहे हैं?

Jun 11, 2025 - 17:03
Jun 11, 2025 - 17:34
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भारत-पाक जंग के 31 दिन बाद अमेरिका ने PAK आर्मी चीफ को भेजा न्यौता, क्या खेल रच रहे डोनाल्ड ट्रंप?

वॉशिंगटन  (आरएनआई) ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान और अमेरिका के संबंधों में महत्वपूर्ण बदलाव आए हैं, जो दोनों देशों की रणनीतिक प्राथमिकताओं, क्षेत्रीय समीकरणों और आंतरिक राजनीति से प्रभावित हैं। ऑपरेशन सिंदूर के बाद पाकिस्तान और अमेरिका के संबंधों की दिशा बदलती हुई दिख रही है। इसी कड़ी में खबर ये है कि पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल सैयद असीम मुनीर अहमद शाह 14 जून को अमेरिकी सेना दिवस के अवसर पर वॉशिंगटन डीसी की यात्रा पर जा रहे हैं। यह कार्यक्रम अमेरिकी सेना की 250वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में आयोजित किया जा रहा है।

वॉशिंगटन में मौजूद पाकिस्तानी राजदूतावास के सूत्रों के मुताबिक 12 जून को मुनीर अमेरिका पहुंच सकते हैं और दुनिया भर के सैन्य नेताओं के साथ समारोह में शामिल होंगे। इस यात्रा के दौरान, अमेरिका पाकिस्तान से भारत और अफगानिस्तान पर हमला करने वाले आतंकवादी समूहों के खिलाफ कार्रवाई करने की अपील कर सकता है। हालांकि इसे लेकर अभी कोई जानकारी नहीं मिली है लेकिन इसे अमेरिका-चीन के रिश्तों और पाकिस्तान की रणनीतिक स्थिति के संदर्भ में देखा जा रहा है।

आसिम मुनीर को वॉशिंगटन बुलाने के पीछे भारत-पाकिस्तान द्विपक्षीय बातचीत से समस्याओं का समाधान करने की पहल हो सकती है। पाकिस्तान, चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) और बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) जैसे प्रोजेक्ट्स के ज़रिए चीन के काफी करीब है। ऐसे में अमेरिका को पाकिस्तान के न्यूट्रल स्टेटस को लेकर भी संदेह बना हुआ है। अमेरिका को चीन के साथ पाकिस्तान के गहराते रिश्ते बिल्कुल रास नहीं आ रहे, यही वजह है कि वो बार-बार पाकिस्तान को तवज्जो देकर उसे अपने साथ करना चाहता है। वो बात अलग है कि पाकिस्तान की स्थिति इस पर साफ नहीं है कि क्योंकि उस पर चीन का प्रभाव कहीं से अनदेखा नहीं है। वहीं पाकिस्तान की बात करें तो वो चाहेगा कि अमेरिका कश्मीर मामले में उसकी मध्यस्थता करे। 

1960 के दशक से चीन-पाकिस्तान के सैन्य संबंध मजबूत हैं। चीन ने पाकिस्तान को मिसाइल, लड़ाकू विमान, और रक्षा उपकरणों की आपूर्ति की है। चीन ने पाकिस्तान के CPEC में $60 अरब डॉलर से अधिक का निवेश किया हुआ है, ऐसे में वो पाकिस्तान का सबसे बड़ा सहयोगी बना हुआ है। अमेरिका हथियारों के मामले में भी पाकिस्तान को अपना बड़ा खरीददार बनाना चाहता है क्योंकि भारत अपने हथियार खुद विकसित करने पर ध्यान दे रहा है। वो इसके लिए सस्ते और बेहतर विकल्पों की ओर देख रहा है और उसे लुभाने के लिए रूस अपनी तकनीक साझा करने का ऑफर भी भारत को देता है।

भारत-अमेरिका और पाकिस्तान के बीच के रिश्ते ऑपरेशन सिंदूर के पहले तक इतने साफ नहीं थे। पाकिस्तान आतंकवादी गतिविधियों को लेकर भारत कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बात कर चुका है और अमेरिका भी इसे अच्छी तरह से जानता है। बावजूद इसके भारत के ऑपरेशन सिंदूर पर उसका साथ देने के बजाय डोनाल्ड ट्रंप गोलमोल बातें करते रहे। दोनों देशों के सैन्य तनाव को खत्म करने का श्रेय को उन्होंने खुद ही ले लिया, उसके बाद से पाकिस्तान से उनकी नज़दीकियां बढ़ने लगीं। सार्वजनिक मंचों से शहबाज शरीफ डोनाल्ड ट्रंप की खुलकर तारीफ करते नज़र आते रहे, तो डोनाल्ड ट्रंप ने सुरक्षा के लिहाज से ट्रैवेल बैन वाले देशों की लिस्ट से पाकिस्तान को बाहर ही रखा। पाकिस्तानी डेलिगेशन भी वॉशिंगटन पहुंचा और भारत से बातचीत को लेकर ट्रंप से सिफारिश की। अब आसिम मुनीर का वॉशिंगटन में बुलावा एक बार फिर साबित करता है कि अमेरिका एशिया में ताकत के संतुलन और भारत के प्रभाव को सीमित करने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल कर रहा है।

अगर हम अमेरिका का साल 2000 से पहले की पॉलिसी देखें तो वो दोनों ही देशों के पावर बैलेंसिंग पर काम करता था। उसकी नीतियां न तो सीधे भारत के पक्ष में थीं और न ही पाकिस्तान के। अमेरिका ने पाकिस्तान को एड के नाम पर खूब पैसा भी बांटा, लेकिन माहौल तब बदल गया, जब पाकिस्तान में घुसकर अमेरिका को 9/11 के गुनहगार ओसामा बिन लादेन को मौत के घाट उतारना पड़ा। पाकिस्तान की ज़मीन पर पहली बार आतंकवादियों की खातिरदारी का सबूत पूरी दुनिया ने देखा। इसके बाद अमेरिका ने न सिर्फ पाकिस्तान को पैसे देने बंद किए, बल्कि उसका नज़रिया भी आतंकी देश के लिए बदल गया। वो बात अलग है कि समय के साथ-साथ अमेरिका एक बार फिर से अपनी नीति को बदल रहा है और पाकिस्तान को लेकर डोनाल्ड ट्रंप का रुख अलग ही दिख रहा है।

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