समुद्री गैस डीएमएस बनी धरती की नेचुरल AC, ग्लोबल वार्मिंग घटाने में निभा सकती है अहम भूमिका
आईआईटीएम पुणे के वैज्ञानिकों ने समुद्री गैस डाइमिथाइल सल्फाइड (DMS) को धरती की प्राकृतिक ठंडक में सहायक पाया है। यह गैस एरोसोल बनाकर बादल निर्माण में मदद करती है, जो सूर्य की गर्मी को परावर्तित कर तापमान घटाती है। अध्ययन मशीन लर्निंग से किया गया।

नई दिल्ली (आरएनआई) भारतीय वैज्ञानिकों ने एक ऐसी गैस की खोज की है, जो पृथ्वी को स्वाभाविक रूप से ठंडा रखने में मदद कर सकती है। यह समुद्रों से निकलने वाली एक प्राकृतिक गैस डाइमिथाइल सल्फाइड (डीएमएस) है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कुछ हद तक कम करने की ताकत रखती है।
भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम), पुणे ने ताजा अध्ययन में पाया कि डीएमएस एक सल्फर युक्त गैस है, जिसे फाइटोप्लांकटन नामक सूक्ष्म समुद्री जीव उत्पन्न करते हैं। यह गैस वायुमंडल में सल्फर का सबसे बड़ा प्राकृतिक स्रोत है और एरोसोल यानी सूक्ष्म कणों के निर्माण में मदद करती है। ये एरोसोल बादल बनने में सहायक होते हैं जो सूर्य के प्रकाश को अंतरिक्ष में परावर्तित कर देते हैं। नतीजतन, धरती पर कम गर्मी पहुंचती है और तापमान में गिरावट आती है। वैज्ञानिकों ने डीएमएस को कार्बन डाइ ऑक्साइड (सीओ2) का कूल ट्विन कहा है। जहां सीओ2 पृथ्वी को गर्म करती है, वहीं डीएमएस प्राकृतिक रूप से उसे ठंडा करने में मदद करती है।
शोध प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित हुआ है, जिसमें मशीन लर्निंग मॉडल की मदद से 1850 से लेकर 2100 तक समुद्री डीएमएस स्तरों का अध्ययन किया गया। पिछले जलवायु मॉडल डीएमएस के प्रभाव को लेकर अस्पष्ट थे, लेकिन यह नया विश्लेषण ज्यादा स्पष्ट तस्वीर पेश करता है। अध्ययन के अनुसार समुद्री जल में डीएमएस की मात्रा में कुछ कमी आ सकती है, लेकिन तेज हवाओं और गर्म सतही तापमान के चलते इसके वायुमंडलीय उत्सर्जन में 1.6 से 3.7% तक की वृद्धि संभव है।
शोधकर्ताओं का कहना है कि अधिकृत आंकड़ों के अनुसार वर्तमान में इंसानी गतिविधियों जैसे कोयला और तेल जलाने से पैदा होने वाली सल्फर डाइऑक्साइड में धीरे-धीरे कमी आ रही है। ऐसे में प्राकृतिक स्रोत के रूप में डीएमएस का महत्व और भी बढ़ जाता है। यह पृथ्वी के वायुमंडल में प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने में एक प्रमुख भूमिका निभा सकती है। यह एक सकारात्मक प्रतिक्रिया प्रणाली की तरह काम कर सकती है।
शोध के अनुसार कुछ विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों जैसे कि आर्कटिक, दक्षिणी महासागर, और दक्षिणी मध्य अक्षांश में डीएमएस का प्रभाव ज्यादा देखने को मिल सकता है क्योंकि यहां मानवजनित एरोसोल की मात्रा अपेक्षाकृत कम है।हालांकि, हिंद महासागर, प्रशांत महासागर और दक्षिणी महासागर के कुछ हिस्सों में समुद्र जल में डीएमएस की मात्रा घटने की संभावना है, जिससे कुल शीतलन प्रभाव कुछ हद तक सीमित हो सकता है।
Follow RNI News Channel on WhatsApp: https://whatsapp.com/channel/0029VaBPp7rK5cD6X
What's Your Reaction?






